तुलसी का जो बिरवा (पौधा) कभी घर-आंगन की शोभा व पवित्रता बढ़ाते हुए अपना आशीर्वाद प्रदान किया करता था, आज के घर-आंगन उसके लिए तरसते नजर आ रहे हैं । ‘फ्लैट कल्चर’ में अब तुलसी के पौधों के लिए कोई स्थान शेष नहीं रहा । हमारे पूर्वजों ने अपने अनुभव व ज्ञान की कसौटी पर कस कर ही तुलसी को इतना महत्वपूर्ण स्थान दिया था कि इसकी पूजा तक की जाने लगी । वास्तव में तुलसी में बहुत से ऐसे अदभुत गुण होते हैं जो इसे दूसरे पौधे से अलग बना देते हैं । यह एक ऐसा दिव्य औषधीय पौधा है जिसके प्रत्येक भाग में गुणों का भंडार होता है । इसके बीज, जड़ तने और पत्तियों का प्रयोग विभिन्न रोगोंकी औषधि बनाने में किया जाता । इसकी सुगंध दूषित वातावरण को भी शुद्ध करने की क्षमता रखती है और हवा में मौजूद कीटाणुओं का नाश करती है जिससे बीमारियों की आशंका कम हो जाती है । इस संबध में देश-विदेश के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए तमाम अध्ययनों एवं शोधों में भी यह सिद्ध हो चुका है कि तुलसी का पौधा न केवल मनुष्यों के लिए बल्कि पशुओं के स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी होता है । तुलसी के पत्तों में संक्रामक रोगों को रोकने की अद्भुत शक्ति है । प्रसाद पर रखने से प्रसाद विकृत नहीं होता । पंचामृत या चरणामृत में इसको डालने से बहुत देर रखा गया जल व पंचामृत खराब नहीं होता । यह ऑक्सीजन की मात्रा में बढ़ोत्तरी करता है । तुलसी की गंध के दायरे में रखी चीजें आसानी से सड़ती नहीं हैं । खाद्य सामग्री और शीतल पेय पदार्थों में तुलसी रखने से उन्हें काफी समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है । तुलसी की माला श्रद्धापूर्वक गले में धारण करने से तनाव व क्रोध कम होता है । लेकिन लगताहै कि अब तुलसी का यह पौधा दिन-प्रतिदिन फैल रहे शहरों के कंकरीट जंगलों में कही खोता जा रहा है ।
शिक्षा का प्रथम उद्देश्य बच्चों को एक परिपक्व इन्सान बनाना होता है, ताकि वो कल्पनाशील, वैचारिक रूप से स्वतन्त्र और देश का भावी कर्णधार बन सकें, किन्तु भारतीय शिक्षा पद्धति अपने इस उद्देश्य में पूर्ण सफलता नहीं प्राप्त कर सकी है, कारण बहुत सारे हैं । सबसे पहला तो यही कि अंगूठाछाप लोग डिसाइड करते हैं कि बच्चों को क्या पढ़ना चाहिये, जो कुछ शिक्षाविद् हैं वो अपने दायरे और विचारधाराओं से बंधे हैं, और उनसे निकलने या कुछ नया सोचने से डरते हैं, ऊपर से राजनीतिज्ञों का अपना एजेन्डा होता है, कुल मिलाकर शिक्षा पद्धति की ऐसी तैसी करने के लिये सभी लोग चारों तरफ से आक्रमण कर रहे हैं, और ऊपर से तुर्रा ये कि ये सभी लोग समझते हैं कि सिर्फ वे ही शिक्षा का सही मार्गदर्शन कर रहे हैं, जबकि दरअसल ये ही लोग उसकी मां बहन कर रहे हैं । मैं किसी एक पर दोषारोपण नहीं करना चाहता, शिक्षा पद्धति की रूपरेखा बनाने वालों को खुद अपने अन्दर झांकना चाहिये और सोचना चाहिये, कि क्या उसमें मूलभूत परिवर्तन की जरूरत है। आज हम रट्टामार छात्र को पैदा कर रहे हैं, लेकिन वैचारिक रूप से स्वतन्त्र और परिपक्व छात्र नहीं, क्या यही हमा…
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