
देश की हर जनता को असीमित अधिकार प्राप्त है मगर अधिकांश को अपने अधिकार की जानकारी ही नहीं है । यह अलग बात है कि अधिकार के साथ-साथ कर्त्तव्य की जानकारी भी नहीं है । जब तक हम अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं करेंगे तब तक अधिकार की माँग करना बेतुकी बात है । आज अधिकार को कानूनी जामा पहनाकर एक्ट का रूप दिया जा रहा है जो कानून का रूप लेगा । कानून में व्याप्त खामियों को दूर करके ही सही और त्वरित न्याय व्यवस्था कायम की जा सकती है । शिक्षा का अधिकार, नौकरी या रोजगार पाने का अधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, देश के किसी भी प्रान्त में जाने और रहने का अधिकार आदि हमारे मूलभूत अधिकार हैं । दुर्भाग्य की बात यह है कि आज हमारे अधिकार पर कटौती की जा रही है । अधिकार पर हमले हो रहे हैं । नक्सलवादी देश में समानांतर सत्ता चला रहे हैं । महाराष्ट्र में राजठाकरे द्वारा अन्य प्रांत के लोगों को खदेड़ने का अभियान या असम में अन्य राज्य के लोगों पर हमले से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि हमें अधिकार से वंचित किया जा रहा है । दूसरे शब्दों में कहें तो यह मानवाधिकार पर हमला है । आश्चर्य इस बात का है कि सरकार मूकदर्शक बनी बैठी है और क्षेत्र तथा भाषा के माध्यम से तोड़ने की साजिश में लगे लोगों का मनोबल बढ़ रहा है । लोकतंत्र का पाँचवा स्तंभ गैर सरकारी संस्थाएँ ( NGO) इस दिशा में अपना योगदान देकर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकती है । जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण २०१० में कर्नाटक के गुलवर्गा में देखने को मिलेगा । आज हमें उस जगह दीया जलाने की आवश्यकता है, जहाँ अभी तक अंधेरा है । जनजागरण के माध्यम से सर्जन शक्तियों के समन्वय एवं उनके बीच संवाद स्थापित किए जाने की परमावश्यकता है । शिक्षा का अलख जगाने एवं विकास हेतु सरकार पर पर निर्भरता से काम नहीं चलनेवाला है । इस दिशा में कार्य करनेवाले व्यक्तियों/संस्थाओं को कदम से कदम मिलाकर चलना होगा । हर क्षेत्र में हमें एक रोल मॉडल बनाने होंगे । उस रोल मॉडल के देखा देखी विचारधारा के समन्वय और संवाद से विस्तार को बल मिलेगा । नए विकल्प नए लड़ाके, नए औजार और नई परिस्थितियाँ बनानी होंगी ताकि समस्याओं का निदान हो सके ।
आज समस्या यह है कि ज्यादातर लोग अपनी शक्ति को समस्याओं की चर्चा करने में अपनी शक्ति को लगाकर नष्ट कर देते हैं । वे समाधान की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास ही नहीं करते है । आज हर किसी को समाधान चाहिए न कि समस्याओं का वही पुराना खटराग । अधिकार के साथ कर्तव्य और समस्या के साथ समाधान हेतु संतुलन कायम करने होंगे । अच्छे विचारों अच्छे लोगों और अच्छे कार्यों को एक साथ आना ही होगा, यही समय की माँग है । देश की गाढ़ी कमाई राजनेताओं के माध्यम से स्विस बैंकों में जमा हो रही है । जनता बेहाल, बेबस और कंगाल है और नेता मालामाल हो रहे हैं । झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं । क्वात्रोची के खिलाफ चल रहे मामले को सीबीआई द्वारा वापस लिया जा रहा है । क्या देश की हर जनता को यह जानने का अधिकार नहीं है कि देश का पैसा कहाँ, किस मद में और कैसे खर्च हुआ है? देश की विश्वसनीय संस्था सीबीआई के अनेक कृत्य ने यह साबित कर दिया है कि देश सर्वोपरि नहीं बल्कि वह भी सत्ता की चापलूसी और दलाली करनेवाली संस्था है । आखिर यह देश किस ओर जा रहा है? भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहराई तक प्रवेश कर चुकी हैं कि सच्चाई और ईमानदारी नामक शब्द अब इतिहास सा प्रतीत होता है । पारदर्शिता हेतु आज आरटीआई जैसे कानून को और अधिक सशक्त किए जाने की आवश्यकता होगी । आज जरूरत यह है कि सारी योजनाओं को बहुआयामी बनाया जाय ताकि उसकी व्यापकता में वृद्धि हो तथा वह कम खर्चीला हो ताकि जन-जन तक पहुँच सके । जनता को व्यापक अधिकार दिए जाँय ताकि वह अपने खिलाफ हर अन्याय का प्रतिकार कर सके । वर्तमान व्यवस्था से आज हर कोई दुखी है । सुखी वही है जो लूटने में लगा है । व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह की ज्वाला पुनः एक नई संपूर्ण क्रांति का आगाज करेगी जिसकी व्यापक संभावना है । शरीर से जिंदे किंतु संवेदना से मृत लोग कभी क्रांति नहीं कर सकते । वैसे लोग केवल बहस कर सकते हैं । वैसे लोग ये चाहते हैं कि भगत सिंह चन्द्रशेखर आजाद, खुद्दीराम बोस, सुभाष चंद्र बोस आदि हमारे घर नहीं अन्य के घर में पैदा हो । ऐसी संकीर्ण एवं स्वार्थी मानसिकता वाले लोगों को जीने का, देश में रहने का कोई हक नहीं । प्रस्तुत अंक मानवाधिकार विशेषांक की उपयोगिता सही मायने में तभी सिद्ध होगी जब आप भी देश के विकास, मान-सम्मान हेतु संकल्पित एवं प्रतिबद्ध होंगे । याद रखें जब-जब संवेदना या संवेदनशीलता खत्म होगी तब-तब एक नया युद्ध होगा । मानवाधिकार की रक्षा हेतु हमें कई मोर्चों पर एक साथ जंग लड़ना होगा तभी विकास और शांति की परिकल्पना पूरी हो सकती है ।
- गोपाल प्रसाद
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