कांग्रेस के युवा संगठन के पदाधिकारियों को विदेशी राजनीतिक कार्यशैली से अवगत कराने के लिए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने उन्हें विदेशों में प्रशिक्षण दिलाने का सुझाव दिया है । पार्टी महासचिव राहुल गांधी के सामने यह सुझाव बहुत पहले ही दिया गया था लेकिन हाल के उनके विदेशी दौरे के दौरान उन्हें यह सुझाव याद आया और आने के बाद उन्होंने इस सुझाव पर अमल लाने की कवायद शुरू कर दी । लोकसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद राहुल संगठन कोचुस्त-दुरूस्त करने में में जुट गए हैं । चुनाव के बाद विदेश प्रवास के दौरान गांधी को उनके नजदीकियों ने यह सुझाव दिया कि अगर युवा संगठन से जुड़े पदाधिकारी भी विदेशी राजनीतिक कार्यशैली से वाकिफ रहें तो उनका उत्साह बढ़ जाएगा । राहुल को यह सुझाव बहुत पसंद आया और उन्होंने इस दिशा में काम करने का सुझाव भी दिया है । भारत लौटने के बाद युवा सांसदों के साथ मुलाकात कर राहुल ने इस फार्मूले पर चर्चा की, जिसे युवा सासंदों ने पसंद किया । राहुल से जुड़े नजदीकी सूत्रों का कहना है कि गांधी ने इस फार्मूले को अमल में लाने के लिए युवा सांसदों के बीच ही एक कमेटी गठन करने का फैसला किया जो कि युवा पदाधिकारियों का चयनकर उन्हें विदेशी दौरे पर भेजने का काम करेगी । फिलहाल युवा संगठन से जुड़े आठ सांसद हैं जो इस काम को देखेंगे । इनमें युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक तंवर, कांग्रेस सचिव मीनाक्षी नटराजन, जितेन्द्र सिंह प्रमुख हैं । इसके अलावा गांधी की नजर उन राज्यों पर भी है जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है । वहां राहुल युवा संगठन को मजबूत करने में जुट गए हैं । महाराष्ट्र और हरियाणा में कई युवा सांसद इस बार लोकसभा में पहुंचे हैं और महाराष्ट्र में भी युवा सांसदों की संख्या पिछली लोकसभा से कहीं ज्यादा है । इसलिए वह विधानसभा के चुनाव में भी युवा फार्मूले को अपनाना चाहते हैं ।
शिक्षा का प्रथम उद्देश्य बच्चों को एक परिपक्व इन्सान बनाना होता है, ताकि वो कल्पनाशील, वैचारिक रूप से स्वतन्त्र और देश का भावी कर्णधार बन सकें, किन्तु भारतीय शिक्षा पद्धति अपने इस उद्देश्य में पूर्ण सफलता नहीं प्राप्त कर सकी है, कारण बहुत सारे हैं । सबसे पहला तो यही कि अंगूठाछाप लोग डिसाइड करते हैं कि बच्चों को क्या पढ़ना चाहिये, जो कुछ शिक्षाविद् हैं वो अपने दायरे और विचारधाराओं से बंधे हैं, और उनसे निकलने या कुछ नया सोचने से डरते हैं, ऊपर से राजनीतिज्ञों का अपना एजेन्डा होता है, कुल मिलाकर शिक्षा पद्धति की ऐसी तैसी करने के लिये सभी लोग चारों तरफ से आक्रमण कर रहे हैं, और ऊपर से तुर्रा ये कि ये सभी लोग समझते हैं कि सिर्फ वे ही शिक्षा का सही मार्गदर्शन कर रहे हैं, जबकि दरअसल ये ही लोग उसकी मां बहन कर रहे हैं । मैं किसी एक पर दोषारोपण नहीं करना चाहता, शिक्षा पद्धति की रूपरेखा बनाने वालों को खुद अपने अन्दर झांकना चाहिये और सोचना चाहिये, कि क्या उसमें मूलभूत परिवर्तन की जरूरत है। आज हम रट्टामार छात्र को पैदा कर रहे हैं, लेकिन वैचारिक रूप से स्वतन्त्र और परिपक्व छात्र नहीं, क्या यही हमा…
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