शक्ति सुधा इंडस्ट्रीज के संस्थापक सत्यजीत कुमार सिंह ने एक जबर्दस्त मिसाल कायम की है । सिंह ने पूरे देश का नब्बे प्रतिशत बिहार में उत्पादित होने वाले मखाना के प्रसंस्करण का उद्योग लगाया और आज उनका टर्नओवर ५० करोड़ रूपए का है । यह उद्योग लगाने से पूर्व वह उपभोक्ता वस्तुओं का कारोबार करते थे । बिहार जैसे प्रदेश में जहां उद्योग-धंधों का वैसे ही टोटा है और राज्य सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी उद्योग लगाने वाले लोग सामने नहीं आ रहे हैं वहां सत्यजीत ने मेहनत के बल पर जो मुकाम हासिल की है वह जरूर दूसरों को उत्साहित करेगा ।
प्राकृतिक आपदा, सीमित संसाधन और आधारभूत संरचना के अभाव के कारण बिहार आज भी उद्योगों का रेगिस्तान बना हुआ है । चार साल पूर्व सत्ता परिवर्तन के बाद उद्योग नीति में परिवर्तन, तमाम सहूलियतों के प्रावधान और कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार के बूते राज्य ने निवेश आकर्षित करने की मुहिम छेड़ी लेकिन कामयाबी नहीं मिल पायी । ऐसे में कोई उद्योगपति खाद्य संस्करण की इकाई स्थापित कर कामयाबी का अध्याय लिखे तो यह साधारण बात नहीं है । शक्ति सुधा इंडस्ट्रीज के संस्थापक सत्यजीत कुमार सिंह ने ऐसी ही मिसाल कायम की है । सिंह ने पूरे देश का नब्बे प्रतिशत बिहार में उत्पादित होने वाले मखाना के प्रसंस्करण का उद्योग लगाया और आज उनका टर्न ओवर ५० करोड़ रूपए है । यह उद्योग लगाने से पूर्व वह उपभोक्ता वस्तुओं का कारोबार करते थे । सत्यजीत ने बताया कि वर्ष २००३ में वह एक बैठक के सिलसिले में दिल्ली गए और वहां उनकी मुलाकात आईसीएआर के डॉ. जनार्दन से हुई । डॉ. जनार्दन ने उन्हें बताया कि मखाना का नब्बे प्रतिशत उत्पादन बिहार में होता है । साथ ही, उन्होंने इसकी मांग और खूबियों के बारे में भी उन्हें बताया । सत्यजीत ने बिहार आकर सबसे पहले मखाना उत्पादन वाले इलाके में जाकर इसकी खेती के हर पहलू का अध्ययन किया । इसके बाद २००४ में उद्योग की नींव डाली । उन्होंने बताया कि मखाना की आमद सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने चार जिलों में पंचायत स्तर पर तीन-तीन किसानों से करार किया और शून्य बैलेंस पर बैंकों में उनके खाते खुलवाए । इस तरह ८ हजार २०० सदस्य उन्होंने जोड़े । वर्ष २००४ में जब मखाना की कीमत उन्होंने ५० से १०० रुपए प्रति किलो थी, उन्होंने किसानों से सौ रूपए प्रति किलो के दर से खरीद कर आज १२५ रूपए प्रति किलो की दर से किसानों को भुगतान कर रहे हैं । सत्यजीत ने जिस तरह खेत से बाजार तक खरीद, ढुलाई और प्रसंस्करण का नेटवर्क तैयार किया है, उसे उत्पादन में क्रांति की संज्ञा दी जा रही है ।
आज शक्ति सुधा मखाना की बिक्री देश के १५ राज्यों में हो रही है । इसके अलावा पाकिस्तान, कनाडा समेत कई देशों में इसका निर्यात हो रहा है । सत्यजीत सिंह ने बताया कि अभी प्रति वर्ष उत्पादन ढाई हजार टन और टर्न ओवर ५० करोड़ का है । वर्ष २०१२ तक उनका लक्ष्य टर्न ओवर १०० करोड़ पर पहुंचाने का है और उन्हें भरोसा है कि वह इसे हासिल कर लेंगे । हालांकि आज भी उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है । मसलन, तालाबों में उत्पादित मखाने की खरीद, उसकी ढुलाई और भंडारण आसान नहीं है । मखाना खरीद के लिए एक-एक किसान के दरवाजे पर दस्तक देनी होती है । वह राज्य सरकार से मंडियों में थोड़ी जगह आवंटित करने की मांग करते रहे हैं । उनका कहना है कि ऐसा होने पर वह मंडियों में एक जगह अनेक किसानों से मखाना की खरीद कर सकेंगे ।
-विनोद बंधु
प्राकृतिक आपदा, सीमित संसाधन और आधारभूत संरचना के अभाव के कारण बिहार आज भी उद्योगों का रेगिस्तान बना हुआ है । चार साल पूर्व सत्ता परिवर्तन के बाद उद्योग नीति में परिवर्तन, तमाम सहूलियतों के प्रावधान और कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार के बूते राज्य ने निवेश आकर्षित करने की मुहिम छेड़ी लेकिन कामयाबी नहीं मिल पायी । ऐसे में कोई उद्योगपति खाद्य संस्करण की इकाई स्थापित कर कामयाबी का अध्याय लिखे तो यह साधारण बात नहीं है । शक्ति सुधा इंडस्ट्रीज के संस्थापक सत्यजीत कुमार सिंह ने ऐसी ही मिसाल कायम की है । सिंह ने पूरे देश का नब्बे प्रतिशत बिहार में उत्पादित होने वाले मखाना के प्रसंस्करण का उद्योग लगाया और आज उनका टर्न ओवर ५० करोड़ रूपए है । यह उद्योग लगाने से पूर्व वह उपभोक्ता वस्तुओं का कारोबार करते थे । सत्यजीत ने बताया कि वर्ष २००३ में वह एक बैठक के सिलसिले में दिल्ली गए और वहां उनकी मुलाकात आईसीएआर के डॉ. जनार्दन से हुई । डॉ. जनार्दन ने उन्हें बताया कि मखाना का नब्बे प्रतिशत उत्पादन बिहार में होता है । साथ ही, उन्होंने इसकी मांग और खूबियों के बारे में भी उन्हें बताया । सत्यजीत ने बिहार आकर सबसे पहले मखाना उत्पादन वाले इलाके में जाकर इसकी खेती के हर पहलू का अध्ययन किया । इसके बाद २००४ में उद्योग की नींव डाली । उन्होंने बताया कि मखाना की आमद सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने चार जिलों में पंचायत स्तर पर तीन-तीन किसानों से करार किया और शून्य बैलेंस पर बैंकों में उनके खाते खुलवाए । इस तरह ८ हजार २०० सदस्य उन्होंने जोड़े । वर्ष २००४ में जब मखाना की कीमत उन्होंने ५० से १०० रुपए प्रति किलो थी, उन्होंने किसानों से सौ रूपए प्रति किलो के दर से खरीद कर आज १२५ रूपए प्रति किलो की दर से किसानों को भुगतान कर रहे हैं । सत्यजीत ने जिस तरह खेत से बाजार तक खरीद, ढुलाई और प्रसंस्करण का नेटवर्क तैयार किया है, उसे उत्पादन में क्रांति की संज्ञा दी जा रही है ।
आज शक्ति सुधा मखाना की बिक्री देश के १५ राज्यों में हो रही है । इसके अलावा पाकिस्तान, कनाडा समेत कई देशों में इसका निर्यात हो रहा है । सत्यजीत सिंह ने बताया कि अभी प्रति वर्ष उत्पादन ढाई हजार टन और टर्न ओवर ५० करोड़ का है । वर्ष २०१२ तक उनका लक्ष्य टर्न ओवर १०० करोड़ पर पहुंचाने का है और उन्हें भरोसा है कि वह इसे हासिल कर लेंगे । हालांकि आज भी उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है । मसलन, तालाबों में उत्पादित मखाने की खरीद, उसकी ढुलाई और भंडारण आसान नहीं है । मखाना खरीद के लिए एक-एक किसान के दरवाजे पर दस्तक देनी होती है । वह राज्य सरकार से मंडियों में थोड़ी जगह आवंटित करने की मांग करते रहे हैं । उनका कहना है कि ऐसा होने पर वह मंडियों में एक जगह अनेक किसानों से मखाना की खरीद कर सकेंगे ।
-विनोद बंधु
Comments
Post a Comment